पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३२४

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ऊम्मिला २८० खेल अनेक खिलाने बाली, लाड-लडाने वाली, मॉ, हिय हुलसाने वाली, हँस-हँस, गोद चढाने वाली, मॉ, आज गोद से खिसक-खिसक कर भाग रहे है बालक ये- यह भी आँख-मिचौनी देखो, मॉ, सनेह प्रतिपालक हे , अपने इन प्यारे वत्सो को ओझल होने दो कुछ क्षण, इसी व्याज से बहलाने दो इन बच्चो को अपना मन । २८१ निष्ठुर जग की कोमलता, सनेह की वत्सलता की स्रोतस्विनि, जीवन-मगलाम्बिके, विश्व-सृजन की तीव्र वेदने, जीवन धारण की सक्रान्ति, मानवता के की तुम, हे कल्लोलिनि भान्ति, तुम विषाद की मूक-व्यथा हो चपल भाव की हे विश्रान्ति, हे मॉ, हे ससार जननि हे- भ्रान्त जगत की चिर निर्धाति । दीप-शिखे, khe he he he शैशव-मानस