पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३१२

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अम्मला हुमा प्रवर्तित २५७ "कौन जानता है कैसे यह घटनाचक्र कौन जानता विधि ने खीची-- भाग्य रेख सीधी या वक्र ? आज दोष-गुण के वितरण का अवसर नही, बहू रानी, इस क्षण वस्तुस्थिति - स्वीकृति मे ही है मगल, दुख, वदना, व्यथा, दाह ओ चिन्ता, क्षोभ, वियोग - अनल, यह सब तुम ले लो, कल्याणी, फैलाए अपना अचल । कल्याणी । 7 २५८ जीवन में, वरदान समझना अभिशापो को ही जय है, युद्धस्थल में तनिक हिचकना ही मानवता का क्षय है, जीवन, मरण, दुख, सुख जो कुछ मिले सी का स्वागत है, भय किसका, जब यह सब ससृति प्रास-चरण-शरणागत सुख दुख तो स्वभाव,-इन्द्रिय-गुण-- वशवर्ती माया मय है, भयो-भय तो इस कातर मन का केवल छाया-भ्रम-भय २६८