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तृतीय सर्ग राम, २५१ राम, श्याम तन, निरानन्द घन, जन गण मन रजनकारी, -मगन-मन-गगन - विहारी भव भय - दुख - भजनकारी, राम,-खिलाडी, बारी बारी खिलाते वे, राम,-रुलाते, राम,-हँसाते, विष - पीयूष - पिलाते वे, राम,---अमानी, अति अभिमानी, निर्गुण-सगुण एक सँग वे, राम,--सहारे, जग उजियारे, राम,-अनेक-एक रॅग वे । दुख-सुख-खेल 7 २५२ राम, नही नर, एक चिरन्तन मनन-पुज हिन्दू-मन का, राम,-एक उत्कर्ष - कल्पना, इक आदर्श आर्य-जन का, राम, सत्य, शिव, सुन्दर भावो- की कल्याणमयी झांकी, राम, सच्चिदानद - भाव की छवि नयनाभिराम, बॉकी, राम,-विचार-विमन्थन-रत हिय- का नवनीत मधुरिमामय, राम,-नित्यतामय, मगलमय संतत सुन्दरता सचय । २६५