पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३०६

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ऊम्मिला जामो, २४५ अवध अँधेरी करती, वन मे- उजियाला करती जामो, सीते, हल-सीता से पूरित करती वन-धरती, जानो, भाषा, योग, ज्ञान, कृषि, यह सब वन मे छिटकाती जाओ, वन-वासिनियो की हिय-कलियों तुम नित चिटकाती विमल वैजयन्ती सस्कृति की वन मे फहराती जाओ, राम-लखन सँग सरयू-लहरी- सी तुम लहराती जानो। २४६ "अजन-रजित चचल खजन- मद-भजन इन नैनो मे, राम निरजन-रजन, धन-मन- रण-व्यजन इन मैनो मे,- जीवन-वरण, मरण-अपहरणा, वन-वन-दर्शन-चाह भरे,- हर्षण, वर्षण, आकर्षण की कम्पन पाह अथाह भरे,- धैर्य-निकन्दन-ऋन्दन कर, गुरु-जन-वन्दन करती जाओ, रामानुगामिनी बन हिय मे, तुम स्फुलिग भरती जाओ । २१२