पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३००

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कम्सिला २३३ मुख से नही, नयन से बाते करते है वे, री बहना, खूब जानती हो न यह सब, तुम से व्यर्थ अधिक कहना, प्रात आज लखन जब बोले कि वे सग जाएंगे वन, तव बे यो देखने लग गए मानो उफन गया जीवन, रहे मौन, बोले न रच भी, बस, आखे तैरती रही, फिर ललाट की रेखामो हिय-विषाद-वेदना कही । २३४ खडे रहे लक्ष्मण आज्ञा के- लिए देर तक राम-समक्ष, पर, वृश्चिक - दशन - पीडा से भरा हुआ था उन का वक्ष, फिर “अच्छा" यो कह कर,फिर से वे विचार-तल्लीन पर, लक्ष्मण के जाने पर सहसा करुणा-दीन मुख से निकला-"हाय ऊम्मिला औ फिर हिय अवरुद्ध हुआ, ऑसू नही एक भी निकले, मन तडपा, हत-बुद्ध हुआ। 15 २६६