पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२९३

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तृतीय सग है मुमुक्षु २१६ "अन्तर है श्रीराम चन्द्र मे, जीजी, और सुलक्ष्मण मे,- वही भेद जो कि है सिद्ध-गुण, और साधना-लक्षण मे, वह अन्तर जो उन दोनो मे है, वह है तुम मे मुझ मे, आर्य राम है सिद्ध, भावना रामानुज मे, इसीलिए वे सकुचाते हैं मुझे साथ ले चलने मे जीजी, है कल्याण इसी मे- यहाँ अवध मे जलने मे । २२० मै ने कहा, मुझे सँग ल लो मेरा याँ कुछ काम नहीं; तो बोले कि ऊम्मिले, मै हूँ लक्ष्मण, मैं श्रीराम नही; मैं न कही हो जाऊँ बाधा उनकी परम साधना की, मै प्रतिबन्धक कही न होऊँ उनकी शिवाराधना की, "ठीक कहा है उन ने, जीजी, तुम मे मुझ में क्या समता ? 'तुम हो त्रिगुणातीत भगवती, - मै हूँ दुर्बलता, ममता । २७६