पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२९१

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तृतीय सर्ग २१५ श्री दशरथ ने रामचन्द्र सम पुरुषोत्तम सुत भेट किया, माँ कौशल्या ने सीता दे, निज जीवन-सुख भेट किया, पूज्य सुमित्रा, बहन ऊम्मिला- ने जो कुछ दी है भिक्षा,- वह तो स्वय, निवेदन को ही मानो अर्पण-शिक्षा, बलि-वेदी-पथ की पगडण्डी सकरी, ऊँची, नीची पर, तुम ने तो आत्म-निवेदन की परिसीमा खीची है । 1 आत्मार्पण-भावना विमल की तुम हो स्फूर्ति-मयी महिमा, विगलित करुणा, व्यथा, वेदना की तुम मूर्तिमती प्रतिमा, यह महान् बलिदान तुम्हारा, यह स्वाहा, यह न्यौछावर, कहाँ मिलेगा ? यहाँ भरा है- तुम ने गागर मे सागर, सच कहती हूँ बहन, नही है लेश औपचारिकता का, इस बलिदान - सस्मरण में है काम न सासारिकता का । २७७