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म्मिला १८६ देवि, शक्ति कहाँ याम नहीं ? तुम कह सकती हो कि अवध से-- ही न ज्ञान क्यो फैलावे? कह सकती हो कि यदि बात यह- है, तो हम क्यो बन जावे ? किन्तु सदेश-प्रचारण साधारण-सा काम नही, ? जव तक कि साधना जन में आठो राज-भोग-मय जीवन मे वह अोज कहाँ, आदर्श कहाँ ? चिन्तन-स्थिरता कहाँ? कहो वह विमल विचार-विमर्न कहाँ ? १६० आज हमारे कन्धो कितना महत् कार्य, रानी, क्या अन्यथा महज वन जाते, अग्रज राम आर्य, रानी? स्वधर्म-सम्पूत्ति-अर्थ तो कुछ सयम करना होगा, अध्यवसाय, अध्ययन, जप, तप मन-शम, दम करना होगा,, यह है एक साधना, साधक- सिद्ध आज दोनो तैयार यह अज्ञान हटेगा, अब श्री राम उतारेगे भूभार । " २६४