पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२३६

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ऊम्मिमा तुम सी वस्तु छोडना है इन प्राणो की ठण्डी फॉसी, फॉसी ऐसी, लगी रहेगी- बरसो तक जिसकी गॉसी, गॉसी वह , जिस से घुट-घुट कर भी न टूटने पाए । दम, दम वह, जो सहने को उद्यत- है वियोग - वेदना प्राणो मे तडपन होती है, अकुलाता है, प्रिये, हृदय, किन्तु क्या करूँ, खडा सामने यह कर्तव्य निठुर, चरम, निर्दय । को जब जब कुछ उथल-पुथल होती है, जब कि खलबली मचती है, जब मानवता करवट लेती नव-नव रचना रचती है,- परिपाटी की भीम शिलाप्रो- खण्ड-खण्ड करके, नव-विचार बह-बह आता है अपना चड रूप धर के, जब प्रेरणा-मेरु-गिरि से है होता मथित समुद्र-हृदय,- तब सक्रान्ति, क्रान्ति, के क्षण की पीडा होती है निश्चय 1 २२२