पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२१३

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तृतीय सर्ग रिक्त हृदय जायेगी, दृग कनीनिका-- आर्य - सास्कृतिक - विजय - पताका घन वन फहरायेगी, देखो तो यह ज्ञान ध्वजा अब कहा - कहा लहरायेगी नग्न ज्ञान-शून्यता पहन कर आएगी सु-ज्ञान भूषा, नव विचार-मणि-भरिता होगी- की मजूषा, भ्रम - यवनिका उठेगी, निर्मल- प्रॉखे खुल-खुल पलक उठेगी, चकित मुदित हुलसाएगी। ६० चकित, चमत्कृत सी दीखेगी- प्रकृति वधूटी की ब्रीडा, बिम्बित होगी अनेकता मे शुद्ध एकता की ज्ञानोत्फारित, ध्यानोन्मीलित, स्वप्नोत्थित आँखे जिनकी- उन वन-जन की हो जायेगी, निशा-रूप घडिया दिन की दवि, ऊम्मिले, सोचो, कितने- सुख का वह शुभ दिन होगा? ज्ञान-दान, साधना-पूर्ण-वह, अतिशय पावन क्षण होगा। क्रीडा, "