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तृतीय सर्ग ४७ आज मुझ को जीवन-सार्थकता का, देवि, सदेश मिला, मुक्त ज्ञान-विज्ञान प्रचारित- करने को वन-देश मिला, नव-विचार-प्रजनन का सूचक- यह साकेतिक क्लेश मिला, तुमको मेरी सुघड ऊम्मिले, क्लेश-रूप प्रेमेश सह जाओ यह विषम ,वेदना- तुम, मेरी अच्छी रानी हे मम लघु-लघु प्रिये, वेदना,- तो है या आनी-जानी । मिला, 1 कर मै जानू हू देवि, हृदय यह हा-हा कार उठे है, मै जानू हू, हिय-रस, बरबस- भर-भर आख झर जानू हूँ मै, हिय-क्रन्दन की औ हिचकी की सब घाते, जानू हू सुकुमारि तुम्हारे मन की अनबोली बाते पर क्या करू? बताओ, तुम यो, दृग मे जल भर मत देखो, मेरी हृदय-स्वामिनी तुम, कुछ- तनिक सम्हालो अपने को ।