पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२०६

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अम्मिला ४५ आज आर्य सस्कृति-जीवन का- यह शुभ प्रथम प्रभात हुआ, रवि-कुल-रवि की प्रथम किरण से अन्धकार अज्ञात वह बर्बर अज्ञान, सुलोचनि, वह जडता उस जगल की,- होने को है नष्ट, आ गई- घडी प्रात के मगल की, नव-मन्देश, ज्ञान, शुचिता के हम वाहक निष्कामी यह आदर्श प्राप्त करने को- राम-लखन वन-गामी है । ससृति चकित-नयन देखेगी, सीता - राम - चरण - रेखा, पद-विन्यास-रेख वह होगी- नव - इतिहास - चित्र - लेखा, अनायास ही आज बन रहे हम सब नव-विधान स्रष्टा, देवि, हो रहे नयन हमारे आज भविष्य-भाव-दृष्टा, सन्देश-प्रेरणा हिय में अनतुष्टा, हृष्टा, लखन-चरण-गति सघन-विजन की- ओर हो रही आकृष्टा 1 यह जागी,