पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१४२

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ऊम्मिला 7 J हिल रहे, (३३) बडी-सी उटज एक यह बनी, तन रहा उस पर कुसुम-वितान, हरित पल्लव की साडी पहिन, कुटी गा रही मिलन का गान प्राज उसके भीतर दो हृदय, एक लय-अनुगत हो मिल रहे , एक ही ताल-स्वरो में बँधे, एक सुस्पन्दन से कुटी के शून्य कक्ष में, अये, कल्पने, लक्ष्मणोम्मिला मिले, पर्ण कुटिया रोमाञ्चित हुई, नेत्र-वातायन उसके खुले । (३४) ऊम्मिला बैठी थी,--सौमित्र- तनिक अलसाये-से, कुछ क्लान्त- सामने बैठे थे । ज्यो पथिक- प्रवासान्ते होता कई शत वर्षों के उपरान्त, पथिक पा गया ईप्सित स्थान लालसा मिटी, दरस मिल गए, मन मे मुदमान , मिली ऊम्मिला उन्हे । वे मिले ऊम्मिला को । क्या योगायोग? तपस्या का फ्ल पायाद्वार, प्रतीक्षित पूर्ण हुआ सयोग । विश्रान्त , 1 हुए लक्ष्मण १२८