पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१३७

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द्वितीय सर्ग 1 (२३) फुल्ल कुसुमो ने भेजे पत्र, पक्षियो के नीडो के द्वार, और लिख भेजा उनको कि है-- आज रसिको का रास-विहार , चिटक कलिकाएँ कहने लगी- "रास हम भी देखेगी आज , न होगी किन्तु सम्मिलित अभी, क्योकि लगती है हमको लाज कुसुम फूला सा बोला एक, ठठोली करता-'भोली कली, तनिक खिल के खुल खेलो खेल- यहा है लखन, जनक की लली।' (२४) उतर आए कोष्ठो से भ्रमर, गुनगुनाते नीचे चले फुल्ल कुसुमो के ले दल-पाणि, मडलाकृति हो कर जुड चले नेत्र थिरके, थिरक सब पख, हुआ वह खेल, हुआ वह रास कुसुम कॉपे, सब दल हिल उठे, उमड आया मृदु राग विभास झूमने लगे मत्त-से लखन देख यह प्रकृति-नटी का रास, ऊम्मिला प्रिय-ग्रीवा से लटक, कर उठी कम्पित-सा उपहास । उड , 1 १२३-