पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१३०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ऊम्मिला ? ऊम्मिले, बेटी, है क्या बात कहो तो, देखू, चुपके कहो ।" उधर लक्ष्मण ने अगुलि उठा, किया सकेत कि "अच्छा रहो- देख लगा ।" पर, मा के नेत्र ऊम्मिला ने फेरे उस ओर,- जिधर चुपके-चुपके से डरा रहा था सुभग ऊम्मिला-चोर , पकड जाते अपने को देख रच खिसियाए लक्ष्मण, अहाँ । किन्तु फिर अट्टहास का स्रोत महल के वातायन से बहा । (१०) "कहो तो, रानी, है क्या बात सुमित्रा बोली, हुलसे प्राण, मन्द मुसकान बिलसने लगी, जुट गया सुषमा का सामान ऊम्मिला ने धीरे से, ओह, बहुत धीरे से अपने अधर- डुलाए, लाज निछावर हुई, उठी यह मधुरा वाणी निखर- "कुछ समय से ये यह प्रस्ताव कर रह है मुझ से दिन-रात, चले विन्ध्याद्रि-दरस के हेतु आपको ले कर अपने साथ । ?"