पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१२६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुकुलित-कुसुम-दर्शन सखी कल्पने चितेरी बनो, और लेखनी, बनो तूलिका , उमगो के रगो में रंगो, करो चित्रित छवि सुख-मलिका , कलम की बारीकी की छटा- उभर आए रेखा के बीच, रग की स्निग्ध लालिमा खिले कल्पना-पट को देवे सीच , रंग रेखा के बीचोबीच खीच दो विमल अम्मिला काश, जहा लक्ष्मण-से पूर्ण शशाक विलस करते हो मदु उपहास । (२) "आठ-दस बरस बीत ये गए, भरा प्राकण्ठ प्यार का सार अनेको वैसारिणि के बन्द कौतुक-उपहार म्मिला के हिय लक्ष्मण बसे, लखन के। हिय ऊम्मिला-निवास , रग यह अब चोखा चढ गया, तनिक देखें उनका उल्लास वासना का न कही है लेश, न रहा कदापि कलह का क्लेश, जब कभी बाकी जोड़ी गई, रह गया सदा नेह अवशेष । 1 1 1 7