यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नारी-हृदय


श हर में ब्लेग था। लोग घडाघड मर रहे थे। वीमारी भी ऐसी थी-धीमार पडते ही लाश निरलते देरी न लगती। सब लोग शहर छोड़-छोड कर बाहर बंगलों में या झोपडे बना कर रहने के लिए भागने लगे।न चाहते हुए भी मुझे शहर छोड़ना पड़ा । मुझे यहां से यहां भागना अच्छा न लगता था। घर में मने सब को ऐग का टीका लगवा दिया था और शाम को७-५ वूद प्लेगक्योर भी पिला दिया करता था। इच्छा थी कि शहर में ही बना रह । कौन यहां से वहाँ भागने को झझट करें। वैसे ही खर्च के मारे हैरान था। फिर और लोगों को तरह में झोपडा बना कर भी तो न रह सकता था? वकालत की शान में