तफतीश करने वाले थानेदार ने बतलाया कि किस प्रकार उन्होंने अभियुक्ता का पता लगाया,
और किस तरह चेन मांगते ही उसने यह चेन अपनी कमर से निकाल कर दे दी। थानेदार ने
यह भी कहा कि अभियुक्ता इस चेन को अपनी मां की दी हुई बतलाती है, जिससे साफ
मालूम होता है कि अभियुक्ता बहुत चालाक है ।
सरकारी गवाहों के बयान हो जाने के बाद अभियुक्ता से मजिस्ट्रेट ने पूछना शुरू किया-
"तुम्हारा नाम?"
"चुन्नी ।"
"पति का नाम ?"
"मैं कुमारी हूं।"
"अच्छा तो पिता का नाम ?"
"मैं नहीं जानती। मैं जब बहुत छोटी थी तब या तो मेरे पिता मर गये थे
या कहीं चले गये थे। मैंने उन्हें देखा ही नहीं मेरी मां ने मुझे कभी उनका
नाम भी नहीं बतलाया; और अब तो कुछ दिन हुए मेरी मां का भी देहान्त हो गया !"
कहते कहते अभियुक्ता की आँखें डबडबा आयीं। दोनों हाथों से अपना मुंह ढंककर वह
सिसकियां लेने लगी। दर्शकों ने सहानुभूतिपूर्वक अभियुक्ता की ओर देखा; किन्तु कोर्ट
इन्सपेकर ने कड़े स्वर में कहा-"यह नाटक यहां मत करो जो कुछ साहब पूछते हैं
उसका जबाव दो।"
अभियुका ने अपने को संभाला और आँखें पोंछकर मजिस्ट्रेट की ओर देखने लगी।