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बैरिस्टर गुप्ता शहर के मशहूर बैरिस्टर हैं। शहर का बच्चा-बच्चा उन्हें जानता है। सरकारी अफसर उनके घर जुआ खेलते हैं, शहर में कहीं नाच-गाना हो तो उसका प्रबन्ध बैरिस्टर साहब को ही सौंपा जाता है। शराब पीने का शौक होते हुए भी वह कलवारी में कभी नहीं जाते, कलारी स्वयं उनके घर पहुँच जाती है। सरकार-दरबार में उनका बहुत मान है, और पब्लिक में भी, क्योंकि सरकारी अफसरों से किसका काम नहीं पड़ता! बैरिस्टर साहब हैं भी बड़े मिलनसार। पब्लिक का काम बड़ी दिलचस्पी से करते हैं। इस प्रकार के कामों में वह बहुत व्यस्त रहते हैं, और दूसरे कामों के लिए उन्हें फुरसत ही नहीं रहती।

मुकद्दमा शुरू हुआ। अभियुक्ता की ओर से कोई वकील न था। वह गरीब और असहाय थी। सरकार की ओर से ३००) मासिक पाने वाले कोर्ट साहब पैरवी के लिए खड़े थे।

बैरिस्टर गुप्ता ने अपने बयान में कहा-"मैं अभियुक्ता को एक अरसे से जानता हूँ। यह शहर में भीख मांगा करती थी। करीब एक महीना हुआ, एक दिन मैंने अपने मकान के पास कुछ गुण्डों को इसे छेड़ते देखा। मुझे इस पर दया आयी। उन गुण्डों को भगाकर मैं इसे अपने घर ले आया और जब मुझे मालूम हुआ कि इसका कोई भी नहीं है, तब खाने और कपड़े पर इसे अपने घरपर बच्चों को संभालने के लिए रख लिया। पन्द्रह दिन काम करने के बाद एक दिन रात को यह यकायक गायब हो गयी। दूसरे दिन मैंने देखा कि बच्चे के गले की सोने की जंजीर भी नहीं है, तब मैंने पुलिस में इत्तिला दी। बाद मेंँ