की अधिकारिणी का घरघ महीने हुए परलोरगामी हुए ।
वसन्त मे देखा कि विपत्तियों ने कुसुम को ज्ञान में उससे भी
अधिक प्रौढ बना दिया है। कुसुम उमर में वसन्त से कुछ
साल छोटी ही थी पिन्तु बसन्त श्रमी संसार-सागर के इसी
तट पर था और कुसुम' युसुम,सहरों के चपेट में थावर उस पार-
वमन्त से बहुत दूर, पहुंच गई थी। वसन्त के जीवन में प्राशा
थी भोर कुसुम का जीवन निराशा से पूर्ण था। निराशा की
अन्तिम सीमा शांति है। कुसुम उसी शान्ति का अनुभल कर
रही थी।
उस दिन वसन्त फिर लौट कर वापिस न जा सका। कुमुम के अनुरोध से वह दो दिन तक कुसुम का मेहमान रहा । दोनों ने परस्पर एक दूसरे के विषय में इतने दिनों का हाराचाल जाना । पन न लिखने की शिकायत न तो कुसुम को थी और न घसन्त को । चलते समय कुसुम ने घसरत से आग्रह किया कि यदि कभी किसी काम से उन्हें इस योर पाना हो तो वह इलाहाबाद में ज़रूर टहरें । कुसुम बसन्त का हदय उसकी आँखों में देख रही थी. उसे विश्वास था कि घसन्त ज़रूर पायेगा।
घसंत का स्वास्थ्य दिनों दिन विगडता हो गया। कोई खास बीमारी तो न थी, केवल आठ दस दिन तक मलेरिया यर से पीडित रहने के बाद वह कमजोर होता गया। छुट्टी में जलवायु परिवर्तन के लिए वसंत मसूरी गया। प्रकृति के सुन्दर दृश्य, यात्रियों की चहल पहल, विजली को रोरनी, फिसी भी बात से वसंत के चित्त को शान्ति न मिल सकी, यह सदा गम्भीर और उदास रहा परता । कुसुम को यह जो