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(Roman Rolland) के दिन सोल एन्चेन्टेड (The Soul Enchanted ) में यही भावना प्रत्यक्ष हुई है।

कुमारी जी की इन कहानियों में भी हम यहुत-कुछ इसी प्रेरणाको कार्य करते पाते हैं। यह कहानियां भी उसी स्वर्ण युग का स्वप्न देपकर, उसीआध्यात्मिक स्वतन्त्रता का आद्वान सुनकर लिखी गई हैं जिसमें नारियो के अस्तित्व को भी उतना ही महत्व प्रदान किया गया है जितना पुरुषों की सत्ता को; और जहां वे अपने मानसिक, शारीरिक तथा नैतिक उत्कर्ष का अपने ऊपर उतना ही उत्तरदायित्व अनुभव करती हैं जितना पुरुष।

इस स्वतन्त्र उत्तरदायित्व, इस स्वाधीन सत्ता तथा इस अवाधित अधिकार का परिज्ञान उनमें अन्धपरम्परागत विकृत आदशों के प्रति विद्रोह की ज्वाला को प्रज्वलित करता है, गार्हस्थ्य जीवन तथा समाज की समय-वेधी रुढ़ियों पर परुष प्रहार करने की उत्तेजना प्रदान करता है, और स्त्री को केवल विलासिता को सामग्री तथा सुख- संभोग का साधन समझने वाले अधिकार-प्रमत्त, स्वार्थान्ध पुरुष-समुदाय को स्वेच्छाचारिता एवं हृदयहीनता के विरुद्ध क्रान्ति की भावना को जन्म देता है।

पातिव्रत्य का रूढ़िगत, साम्प्रत हिन्दू आदर्श पूर्ण परवशता और दासत्वकल्पा मौन आज्ञाकारिता का पर्यायवाची बन गया है। पवित्र ईष्या में विमला इसी विकृत आदर्श के प्रति असंतोष प्रकट करती है; उन्मादिनो में होना भी इसी परवशता, इसी पराधीनता पर चार आँसू बहाती है। विमला का यह अनुभव देखिए—