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दार के यहां सकुशल होगया । कुसुम का पड़ना-लिखना बन्द होगया और साथ ही बन्द होगया बसन्त का उसके यहाँ का आना जाना । वसन्त को अब मालूम हुआ कि उसका हृदय उससे छिप छिप कर कुसुम को कितना चाहने लगा था, कुसुम को अपनाने की लालसा भी उसके हृदय में ही हुई थी। अपने हृदय के इस विश्लेषण पर बसन्त को आश्चर्य हुया । इन इच्छाओं ने कर उसके हृदय में प्रवेश किया था घसंत निर्धारित न कर सका। कर यह भावना उसके हृदय में पाई ऐसा उसे स्पएभाव से स्मरण नहीं पाया। उसे अपने ऊपर और अपनी बुद्धि पर विश्वास था। किंतु हृदय बुद्धि और तर्क को धोखा देकर, मनुष्य को किस प्रकार श्रसम्भव फल्पना की और प्रेरित कर सकता है, पसन्त ने श्राज जाना । उसने सोचा यदि मैं सचमुच कुसुम फो प्यार करता था तो मैंने कुसुम से यह कहा क्यों नहीं? यदि उसे अपनाने की इच्छा मेरे हृदय में थी तो उसे मैंने कभी प्रकट क्यों नहीं की? यह अपने प्रश्नों पर श्राप ही निरुत्तर हो जाता था।

फिर उसने चार पार यही सोचा कि उसने सदा से ही कुसुम को प्यार किया है और हृदय से प्यार किया है। तय, प्या कुसुम भी उसे प्यार करती थी शायद 'हा" या "नहीं," वसन्त कुछ निश्चय न कर सका। किन्तु तक की शुष्क विवेचना में उस दिन की कुसुम की सजल प्रांखें ड्यते हुप को तिनके के सहारे की तरह वसन्त को मालूम हुई।

वसन्त पम० ए० पास करने पर लाहौर कालेज में प्रोफेसर हो गया और साधारण स्थिति में अपने दिन काट- ने लगा। उसे प्रोफेसरो करते करते चार साल हो गये किन्तु