की तरह पसंत में उच्छेखलता और उद्दडता न थी, उसकी पातचीत हंसी मज़ाक सय सीमा के बाहर कभी न जाते थे। कुसुम ने वसंत से अंगरेजी पढ़ाने के लिए प्रामह किया जिसे घसन्त ने स्वीकार कर लिया। और इस प्रकार धोरे-धीरे कुसुम और वसन्त की घनिष्टता बढ़ने लगी। कुसुम से मिलने के पहले यसन्त ने जो उसके विषय में धारणा बना रखी थी कि धनवान पिता की अकेली कन्या ज़रूर ही उद्धत स्वभाव की होगी वह निर्मूल हो गई । अव उसे कुसुम के पास जाने की सदा इच्छा बनी रहती थी, सवेरे से ही वह शाम होने को वाट देखा फरता। अपनी दशा पर उसे स्वयं आश्चर्य था।
कुसुम मैट्रिक पास हो गई और वसंत यी० ए०। किन्तु दोनों ही ने आगे पढ़ना जारी रखा । वसंत अब भी कभी कभी कुसुम के घर आया करता था।
एक दिन यसंत ने सुना कि कुसुम का विवाह मई के महीने में होने वाला है। वसंत समझ न सफा कि यह सुन फर उसका चित्त अव्यवस्थित सा क्यों हो गया। उसने कभी स्वप्न में भी न सोचा था कि कुसुम के साथ उसका भी कोई ऐसा सम्बन्ध हो सकता है । अपनी और कुसुम को आर्थिक स्थिति में ज़मीन आसमान का अन्तर यह देखा करता था। और कभी इस प्रकार की असंभव कल्पना कोन लाने के लिए उसे अपने ऊपर विश्वास था। कुसुम, उसके लिए श्राफाश- कुसुम थी। उसे छूने तक की कल्पना येचारा वसन्त फैसे फरता? अदरक के व्यापारी को जहाज़ की खबर से क्या मतलब" और यदि जहाज़ की खबर सुन कर उसे मुख-दुख हो तो आश्चर्य की बात ही है। वसन्त यही