केशव ने कहा-"हाँ, प्राइज इन्हीं को मिला था।" उसके बाद कुसुम, बसन्त और केशव दोनों की शाम के समय अपने यहां चाय के लिये निमत्रित करके अपने पिता के साथ कार पर बैठ कर चली गई।
कुसुम कुमारी अपने माता-पिता की इकलौती कन्या है। इलाहाबाद के जार्जटाउन मुहरले में, जहां शहर के धनी मानी व्यक्तियों के बगले हैं वहीं, कुसुम के पिता की एक विशाल कोठी है। शहर के प्रमुख धनी व्यक्तियों में उनकी गणना है। उनके पास मोटर है। गाड़ी है और भी न जाने क्या क्या है। इस पांच नौकर सदा उनके घर पर काम किया करते हैं। घर बैठे केवल लेन-देन स ही उन्हें छै सात सौ रुपये मासिक की आमदनी हो जाती है । कुसुम ही उनको एक मात्र सन्तान है जा यहीं कास्थवेट गर्ल्स स्कूल में मैट्रिक में पढती है। केशव कुसुम का पडोसी है, यूनिवर्सिटी कालेज में बी० ५० का विद्यार्थी है । वसन्त केशव का सहपाटी है, वह अपने मामा के साथ अहियापुर में रहता है, वसन्त के माता-पिता पचपन में ही मर चुके हैं और तभी से वसन्त अपने मामा का प्राधित है । वसन्त पढने-लिखने में कुशाग्र बुद्धि सदाचारी, सरल स्वभाव और मिलनसार है इसलिए शिक्षक उसे चाहते हैं और सहपाठी उसका आदर करते हैं।
शाम को केशव के आग्रह से वसन्त कुसुम के घर तक आया तो जरूर था किन्तु उसे यहाँयात घातमें सकोच मालूम हो रहा था । जय फुसुम उन्हें लेकर मखमली सीढियों पर से ऊपर थपने ड्राइंग रूम में जाने लगी तय वसन्त ने अपने पैरों की ओर देखा-जहाँ घुसुम के कमल सरीसे