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युवती होने पर मेरे विवाह की चर्चा स्वाभाविक थी। मने सुन रक्खा था कि विवाह कुछ चक्कर लगाकर होता है और एक अपरचित व्यक्ति उन्हीं कुछ चक्करों के बाद लड़की को अपने साथ लिया ले जाता है। किन्तु मुझे तो विवाह के चक्कर से चकर अधिक रचते थे जो कभी कभी में कुन्दन के लिए और प्राय कुन्दन मेरे लिये लगाया करता था। मैं चाहती तो यही थी कि मुझे अब और किसी के साथ चक्कर न लगाने पड़े मैने तथा कुन्दन दोनों ने मिलकर जितने चक्कर लगाए है हमारी जीवन यात्रा के लिए उतने ही पर्यात हैं। किन्तु पिताजी तो चिट्ठी पत्री से कुछ और ही तय कर रहे थे। सुना, कि कोई इङ्गलेण्ड से लोटे एए इंजीनियर हैं, जिनके साथ पिताजी मुझे जीवन भरके लिए बांध देना चाहते है। सोचा, मुझे कौनसी इमारत खड़ी करवानी है या कौनसा पुल तैयार करवाना है जो पिताजी ने इंजीनियर तलाश किया। मेरे जीवन के थोड़े से दिन तो कुन्दन के ही साथ हँसते खेलते बीत जाते, किन्तु यहाँ मेरी कौन सुनता था? परिणाम यह हुया कि यहां इतने चक्कर लगा कर भी मेरे ऊपर कुन्दन का कुछ अधिकार न हो पाया और इंसीनियर साहब ने, जिनसे न मेरी कभी की जान थी न पहिचान, मेरे साथ केवल सात चक्कर लगाए और में उनकी होगयी।

इधर मेरा विवाह होरहा था उधर कुन्दन बी.ए, की परीक्षा दे रहा था। सुना कि कुन्दन परीक्षा-भवन में बेहोश होगया । आह !बेचारा एक साथ ही दो दो परीक्षायों में बैठा भी तो था!