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तक गुप्त रखना विस्मय-वर्धन का विशेष कारण घन जाता है। कहानी का शीर्षक उस अन्त को और भी अधिक विस्मय- वर्धक बना देता है। सेने की कंठी का नाम पढ़कर पाठक उस कंठी के मुलम्मे की होने की सम्भावना को भी भूत जाता है। अस्तु।

कुमारी जी की कहानियाँ निसन्देह अच्छी हैं। और बहुत अच्छी हैं। उनमें कला है,रोचकता है, आकर्षण है और उनकी उपादेयता भी निर्विवाद सिद्ध है। चे मनोविनोद के अतिरिक्त समाज-सुधार अतएव लोक कल्याण को दृष्टि में रखकर लिखी गई हैं। उनसे "स्त्रियों के हृदय को पहचानो और उसको चारो और फैलने ओर विकसित होने का अवसर दो" को ध्वनि उठती है,जो एक सच्ची स्त्रियो-लेखिका तथा उसके व्यक्तित्व का बोधक है। कुमारी जी स्त्री हैं, स्त्रियों के प्रति उनकी अधिक सहानुभूति होना भी स्वाभाविक है। कुमारी जी को उस ध्वनि में हम उनकी मनस्थिति, उनके उत्साह, उनकी क्षमता, उनकी मृदु प्रकृति, उनको निष्कपट मनोवृत्ति के दर्शन करते हैं। और यदि सामाजिक बन्धनों की सृष्टि कर अपने स्वत्यों को सुरक्षित रखने वाला हमारा सुखासीन, चतुर पुरुष-समाज पूर्णतया संकीर्ण-हृदय और पतित नहीं हो चुका है, तो वह उनकी इस स्त्री-स्यत्व प्रतिपादन-प्रार्थना के प्रति पराङ्गमुखता का भाव प्रदर्शित नहीं कर सकेगा।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी वि.सं. १९९१ केशव पाठक केराव-कुटीर, जबलपुर


कुछ मेरी और कुछ प्रेस वालों की असावधानी से इसी भूमिका के पृष्ठ १३ को १८ वो पंक्ति में प्रतिभूमि के स्थान पर अवभूमि छप गया है। पाठक कृपा कर उसे ठीक करलें। देशव पाठक