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होने दें। चरित्र-वेचित्र्य आवश्यक है। वे पुरुष पात्रों के साथ और अधिक सहानुभूति रखें। उन्हें अपने मनोगत विचारों, अपनी भावनाओं, अपने कारणों तथा अपनी परिस्थितियों को समझाने का अवसर दे.या स्वयं ही उन पर प्रकाश डालने की चेष्टा करें। ऐसा करने स ही औचित्य की पूरी-पूरी रक्षा हो सकती है। जहां स्त्रियों के स्वत्वों और अधिकारों का पग पग पर उल्लेख करती है, वहां वे कभी. कभी उनके कर्तव्यों ओर उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में भी कुछ-न-कुछ अवश्य कहें। ऐसा करने से कहानियों में वाद- विधाद, संतोष और मतभेद के लिए कम स्थान रद्द जायेगा।कहानियों के अन्त के सम्बन्ध में भी एक बात कह देनी आवश्यक है। विवरणात्मक होने पर यह पाठक की कल्पना को उचित सतर्कता और उत्तेजना प्रदान न कर, निष्क्रिय, निश्चेष्ट बना देता है। फिर, कहानी जय अपनी प्रतिभूमि पर पहुंच जाती है तब उसके बाद का प्रत्येक शब्द उसके सौन्दर्य को नष्ट करने लगता है । कहानी अपनी सीमा का उल्लंघन करने लग जाती है। वेश्या की लड़की और अंगूठी की खोज के अन्त में हमें यही बात देखने को मिलती है। दोनों कहानियों के अन्त विवरणात्मक से हो गए हैं। हां, उमादिनी और अमिक्य के अन्त निर्दोष कहे जा सकते हैं। दोनों कहानियां हमारी सहानुभूति प्राप्त करते ही समाप्त जाती हैं। हमारी कल्पना उनके साथ हो लेती है। सोने कोटी का अन्त तो निसन्देह बहुत ही सुन्दर है। आधर्य और चमत्कार, जो एक अच्छी कहानी के विशेष गुण है, इस कहानी में प्रधानत उसके अन्त के कारण ही उत्पन्न हुए हैं। सोने की कठी के भेद को कहानी का अन्त न आ चुकने