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एकाध स्थल को छोडकर, व्यर्थ, आवश्यक और अरुचिकर वर्णनों को भी इन कहानियों में स्थान नहीं मिला है। विपय के अन्तरतम में ही लेखिका जैसे सहसा प्रविष्ट हो जाती है। यह भी इन कहानियों को रोचक बना देने का एक कारण है। नाटकीय तत्व का समावेश भी इन कहानियों में सुन्दर ढग पर हुआ है । नाटकीय शैली का प्रयोग जहाँ-कहीं भी हुआ है वहीं कहानी अधिक सजीव और प्रभावोत्पादक होगई है। कहीं कहीं पर पात्र को वाह्य रूप रेखा, उसके व्यक्तित्व की विशिष्टता एक-दो शब्दों के प्रयोग से ही जगा दी गई है। विविध वणों का स्वारस्य तथा संमिधरा भी कहीं-कहीं पाठक को घटना स्थल पर उतनी ही तीव्रता से आकर्षित कर विलैय रहने का आग्रह करता है जितना कि कथानक का क्रम । पात्रों का चरित्र-विश्लेषण भी महायासकृत नहीं दीखता । प्रधानत परिस्थितियों से विशेष सम्बन्ध रखने वाले चरित्र-तत्र का उपयोग ही पात्र के चरित्र चित्रण में लेखिया ने किया है । फिर पानी का चरित्र-चित्रण भी उनके कार्य-व्यापार, कथोपस्थन द्वारा ही किया गया है। मेरी समझ में, क्योपक्धनात्मक और घटनात्मक चित्रण पानों को जो सजीवता और विधायक्ता प्रदान करते हैं, चह साकेतिक चित्रण या साक्षात् चित्रण नहीं करता। आभिनयात्मक चित्रण में पान स्वतंत्र संकल्प शक्ति-समन्वित और अधिक जीते-जागते दीखते हैं। वे हमारे अधिक समीप होते हैं। कहानी में यही वाच्छनीय होना भी चाहिए। कई स्थलो पर इन कहानियों के विचारों तथा भावो में काव्योचित उत्कर्ष भी देखने को मिलता है।