१४३ 1 कहीं छाया पैर छूने भाई तो? लाख वेश्या की लडकी है; पर अब तो यह मेरी पुत्रवधू है। क्या में खाली हाथ ही पैर छुपा लूंगा? सराफे की ओरधूम गये। वहा से एकजोडी जडाऊ कगन परीदे, और जेब में रखकर दस कदम भी न चल पाप होंगे कि सामने से प्रमोद पाते हुए दिखे। चन्द्रभूपण के पैर रक गये, प्रमोद भी ठिठके । झुककर उन्होंने पिता के पैर छू लिए । चन्द्रभूपण की अांपों से गंगा-जमना यह निक्ली प्रमोद के भी भासू न रुक सके। दोनों कुछ देर तक इसी प्रकार भासू बहाते रहे। कोई यात-चीत न हुई । अंत में, गला साफ करते हुए चन्द्र भूपण ने कहा "घर चलो घेटा! तुम्हारी अम्मा रात दिन तुम्हारे लिए रोया करती हैं। प्रमाद ने कोई आपत्ति न को। चुपचाप पिता के साथ घर चते गये। उस दिन वह बहुत रात गए घर लौटे। उनको वाट जोहते-जोहते छाया भूखी प्यासी सो गई थी। जब प्रमोद अपने कमरे में पहुचे तव १२ बज रहे थे। इस समय छाया को जगाना भी उन्होंने उचित न समझा । विलम्ब से लोटने का उन्हें दुख था जब फि वह भोजन कर चुके थे और छाया उनकी प्रतीक्षा में भूखी ही सो गई थी। उन्हें छाया के दया भाई उसके सर पर हाथ फेरते-फेरते पहनींद की प्रतीक्षा करने गले। छाया गाढी निन्द्रा में सोई थी। उसके चेहरे पर कभी हसी और कभी विषाद कोरेखा खिंच जाती थी। प्रमोद यह देख रहे थे। श्राज उन्हें अपने कटु व्यवहार तीर की तरह चुभने लगे। इसी सोच-विचार में वह सो गए। छाया की भी नींद सुलो, घडो को ओर देखा शा यजेथे। पास ही प्रमोद सुख का नोंद ले रहे थे। वह बडी व्याकुन हुई उसने अपने 1
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