करती। नगर के संगीत-प्रेमी जब स्वयं ही उसके यहाँ पहुँच जाते, तो राजरानी उन्हें निराश न करती; किंतु वह किसी के यहाँ बुलाने पर गाने के लिए नहीं जाती थी। छाया इसी राजरानी की इकलौती कन्या थी। राजरानी की सारी आशाएँ इसी कन्या के ऊपर अवलंबित थीं। विद्याध्ययन की ओर छाया की अधिक रुचि देखकर राजरानी ने उसे स्कूल में भरती करवा दिया। छाया नगर की कुछ पुरानी प्रथा के अनुयायियों के विरोध करने पर भी कुलीन घर की लड़कियों के साथ पढ़ते-पढ़ते कॉलेज तक पहुँच गई। और जिस दिन पहले-पहल वह कॉलेज पहुँची, प्रमोद से उसकी पहचान हो गई । यह पहचान, पहचान ही बनकर न रह सकी; धीरे-धीरे वह मित्रता में परिवर्तित हुई और अंत में उसने प्रणण का रूप धारण कर लिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि परिवार वालों का विरोध, तिरस्कार और प्रताड़ना न तो प्रमोद को ही उसके पथ से विचलित कर सका न छाया को। विवाह के लिए उन्हें कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। कोर्ट में रजिस्ट्री होने के बाद आर्य-समाज मंदिर में उनका विवाह वैदिक रीति से संपन्न हुआ। अग्नि को साक्षी देकर वह दोनों पति-पत्नी के पवित्र बंधन में बंध गए।
बचपन से ही कुलीन घर की लड़कियों के साथ मिलते-जुलते रहने के कारण उनके रीति-रिवाजों को देखते-देखते छाया के हृदय में एक कुल-वधू का जीवन बिताने की प्रबल उत्कंठा जाग्रत हो उठी थी। प्रमोद के साथ विवाह-सूत्र में बंधकर छाया ने उसी सुख का अनुभव किया।