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१२२ लजित' कितना थुमित और स्तिना प्रोधित था में कह नहीं सकता। चार २ यही सोचता था विभाखिर में कई वार मरते २ क्या इसी कलुपित कार्य को करने के लिये वच गया । यदि पहिले ही मर चुका होता तो यह अनर्थ होता ही क्यों? -यो त्यों करके रात काटी। प्रभी पूरा प्रकाश भी न हो पाया था कि स्त्री से यह कह केक में एक बारश्यक कार्य से कुछ दिनों के लिये बाहर जारहा ह। अपना थोडा सा जरूरी सामान लेकर घर से निकला, कहा जाने के लिये कह नहीं सकता, किन्तु जाना चाहता था दूर- संसार से बहुत दूर जहा स क्सिी भले आदमा पर मुझ पापी की छाया भो न पड सके। किन्तु घर स निकलकर अभी दस कदम भी न चल पाया था कि नवल किशोर का नौकर शाघ्रता स श्राता हुआ दिखा। किसी अज्ञात श्राशका से में काँप सा उठा, किन्तु फिर भी मैंने जैसे उसे देसा ही न हो, इस भाव से तेजी से कदम बढाये । नौकर ने मुझे पुकार कर कहा, उसकी आवाज भारी और स्वर दुस पूर्ण था। 'ठहरो भेया। कहा जाते हो? तुम्हें चावू जी ने जल्दी बुलाया है । मेरे पैरों के नीचे से जेसे धरतो सिसक गई । नवल ने श्राते ही मुझे क्यो बुलाया? तो क्या प्रजागना ने उनके आते ही मेरी समझ में कुछ न श्राया फिर भी अपने को बहुत सम्हाल कर मने भीखू से पूछा- इसी समय बुलाया है क्या कोई बहुत ज़रूरी काम है। बूढा नौकर रो पडा। रोते रोते वाला- जरूरी काम क्या है भैया, बहू जी की तबियत बहुत