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" इस अशान्ति में मैं जला जा रहा था । मुक्ति का मार्ग दंढे भी न मिल रहा था। अन्त में बहुत कुछ सोचने-विचारने के याद, मैं इस निर्णय पर पहुंचा कि मुझे यह नगर छोड़ देना चाहिए । नगर छोड़ने का पक्का निश्चय करके मैंने एक प्रकार की शान्ति सी पाई नवल किशोर पाहर गए थे। अपने घर की और वजांगना की देख-भाल वे मेरे हो ऊपर छोड़ गए थे। नगर छोड़ने से पहले ५ मिनट के लिए ब्रांगना से मिल लेना शायद अनुचित न होगा यही सोचकर मैं उनके मकान की तरफ चला । साथ ही मुझे यह भी जानना था कि नवल किशोर कर लौटने वाले हैं। जब मैं उसके घर पहुंचा करीव श्राट वज रहे थे। यह सबसे ऊपर वाली छत पर एक कालोन डाले पड़ी थी। मुझे देखते ही उठ कर बैठ गई । मैं उसके घर श्राज कई दिनों में पाया था। यह कुछ नाराजी के साथ अधिकारपूर्ण स्वर में किन्तु मुस्कुराती हुई चोली- "तुमने तो पाना ही छोड़ दिया है योगेश ? क्या किया करते हो? ये घर नहीं हैं तो क्या तुम्हें भी न थाना चाहिए? मैंने उसकी बात का कुछ उत्तर न देते हुए पूछा- "नवल भय्या कर श्रायगे विरजो" "कल सवेरे चार बजे की गाड़ी से" यह प्रसन्न होतो दुई वोली। मैंने एक निश्चिन्तता की सांस ली।मैं सुबह यहां से जाऊंगा उस समय तक नवल किशोर श्रा जायंगे। विरजो अफेली न पड़ेगी। इससे मुझे प्रसन्नता ही हुई। पास ही