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अनुभव किया, वे पति पत्नी दोनों मिलनसार, हंसमुख, सीधे-सच्चे और सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं। वजांगना के विषय में मेंने जितनो तरह की बातें सुन रक्खी थीं वे मुझे सभी निर्मूल और अनगल प्रतीत हुई। जांगना के हृदय को महानता और उसके सद् व्यवहारों ने मेरे हृदय में उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास के ही भाव जाग्रत किए। उन दोनों पति-पत्नी का रहन सहन, यात-थ्यवहार को देखते हुए किसी प्रकार के सन्दह के लिए कोई स्थान न रह जाता था। बजागना सोधी, भोलो और उदार प्रकृति को स्त्री थी। उनके उस दाटे से घर में प्रेम, विश्वास, श्रादर और थानन्द का ही प्राधिपत्य था। घृणा, अपमान, ईर्पा और डाह का यहां तक प्रवेश ही न हो पाता था । वजागना की यह धारणा थी कि अपने घर में पाया हुआ शत्रु भी अपना अतिथि हो जाता है, और अतिथि का अपमान करना उसकी दृष्टि में बडा ही निन्दनीय काम था। इसलिए अपने घर में श्राए हुए उन व्यक्तियों के साथ भी जिनके प्रति वजागना के हृदय में क्सिी प्रकार की श्रद्धा या श्रादर के भाव न होते थ, वह केवल श्रादर युक मधुर व्यवहार ही करती थी। उसके घर में पाया हुश्रा कोई भी व्यक्ति बिना जलपान के पदाचित ही वापिस जाता था । यह धुरे मनुष्यों से घृणा न कर प उन्की बुराइयों से घृणा करती थी और भरसक उन्हें विसी प्रकार उन बुराइयों से बचाने का प्रयत्न भी करती। वह रूसार के हलप्रपंचों से परचित न थी। उसके सामने भगवान बुद्ध और महात्मा ईसा के महान बादश थे जिनके अनुसार चल पर इस छोटी सी जिन्दगी में वह लागों के साथ केवल कुछ भलाई ही कर