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गिर गई। एक तो वैसे ही में उसे कभी न पहिनती थी। श्राज ही पहिनी और पाज हो गिर गई"। बातचीत का प्रवाह यदल गया। सव की सब घबराकर खडी हा गई। यहा-वहा जहा गिरी थी, उससे यहुत दूर तक अंगूठी को खोज होने लगी। ये लोग करीय १० मिन' तक, उठ कर, बेठ कर, झुक कर अंगूठी खोजती रहीं, पर यह न मिली। उन में स एक ता मेरे बहुत पास तक श्रागई। मैं घबरा कर उठ बैठा। श्राशका हुई कि कहीं अगूठी का चोर में ही न समझा जाऊ । जी चाहा कि में भी उनको अगूठी दृढने लगूं। पर उनकी अगूठी बिना उनकी अनुमति के फैस दृढता ? में जानता था कि उनकी अंगूठी सोई है फिर भी वात चीत का सिलसिला जारी करने के लिए. उनके कुछ समीप पहुंच पर, कुछ सकोच के साथ मेने पूरा- "श्राप लोग क्या दृढ रही ह क्या में श्रापको कुछ सहायता कर सकता हूँ? अगृठी की मालकिन बोल उठो- "मरी अंगुडी गिर गई है । बडी कीमती अंगूठी है"। इसके बाद में युछ न चाला उन लोगों के साथ उनकी अंगूठी में भी दृढने लगा परन्तु करीव श्राध घर तक टूढने पर भी जब अगूरी कहीं न मिली, तो वे सब हताश हो गई। मुझे उनको दशा पर यडी दया सी नाई। मन अंगूठी की स्वामिनो से कहा- "यदि श्राप मुझ पर विश्वास कर मक्ती हो ता, प्राप पिश्चिन्त हाफर अपने घर जाइए। श्रप रात बहुत जा चुका है कोई श्रादमी यहा श्रार गा नहीं। और मैं रात