आज विमला बहुत प्रसन्न थी। उसने पई तरह के पकवान जो अखिलेश को अच्छे लगते थे, अपने हाथ से बनाए । तरह तरह के फल मगवाए, और वह शाम को राखी बांधने के लिए जाने की तैयारी करने लगो । एक दासी द्वारा उसने अखिलेश के पास सन्देशा भी भिजवा दिया कि "आज शाम को वजे हम दोनों अखिल भैय्या से मिलने पाचंगे। वे घर पर ही रह कहीं जॉय नहीं" इस सन्देशा स अखिल को कुछ श्राश्चर्य न हुश्रा क्यों किस दिन राखी थी । विमला दिन भर बडी उमग और उत्सुकता से संध्या की प्रतीक्षा करती रही, रिन्तु शाम को जब छ साढे छै बज गए । और विगाद में अपनी पुस्तकों पर से सिर न उठाया, ता धीरे से जाकर यह विनोद के पास बैठ गई। विनोद ने सप्रेम दृष्टि से विमला की ओर देखकर कहा।
"कहो विन्नोरानी। भाज कुछ खिलाओगी नहीं?
विमला ने तुरंत अपने बनाए हुए कुछ पश्यान तश्तरी में लाकर रख दिप, विनोद ने उन्हें खाया। विनोद को इतना प्रसन्न देखकर विमला का साहस कुछ बढ़ गया था बोली-
"देखो ये से साढे छै वज गए अखिल भैय्या के घर अय कर चलोगे"?
विनोद की हैसी कुछ बोध मिश्रित उदासीनता में परिणित हो गई। दृष्टि का प्रेम भाव तिरस्कार में बदल गया, कुछ क्षण तक चुप रह कर, वेरुखे स्वर में बोले-
'मैं तो न जाऊंगा। तुम जाना चाहो तो चली जाओ" विमला को जैसे काठ सा मार गया। वह विनोद के इस भाव परिवर्तन को समझ न सकी कुछ चिढ कर योली-