बार उसकी तबीयत हुई कि कार रकवा कर अखिलेश त उसके इस प्रकार न श्राने का कारण पूछ ले, किन्तु दूसरे ही सैण उसे ख्याल आ गया कि वह अखिलेश न पाने का कारण पूछ तो लेगी, किन्तु इस तनिक सी बात का मूल्य उसे कितना अधिक चुकाना पड़ेगा। अपनी प्रसन्नता अप्रसन्नता को उसे उतनी परया न थी विनोद की शान्ति न जाने कितने समय के लिए भंग हो जायगी। उनकी मानसिक चेदना का विचार आते ही उसने कारबढवा लीरोकी नहीं, पर उस दिन अखिलेश को वह दिनभर मूल न सकी, उसे वह दिन याद आ रहा था जिस दिन उसने दा पैसे में अखिलेश को भाई के रूप में बांधा था।
इसी प्रकार कुछ दिन और बीत गए, राषी का त्योहार प्राया। विमला आज अपन भ्रातृ-प्रेम को न रोक सकी। से वह चाहती तो मां के घर जाकर वहा अपनी मां के द्वारा अखिलेश को बुलवा सकती थी, किन्तु विनोद से छिपा कर यह कुछ भी न करना चाहती थी। इस लिए वह विनोद के पास खाकर कुछ संकोच के साथ बोली--
"श्राज राखी है। तुम मुझे श्रखित भैया के घर ले चलना में उन्हें राखी बांध पाऊंगी।
विनोद किसी पुस्तक को एकाग्र चित से पढ रहे ये। विमला फी यात कदाचित पिना सुने ही उन्होंने सिर मुकाए ही झुकाए कह दिया 'अच्छा" विमला को मुंह मागा घरदान मिला। उसने भागे और कोई यातचीत न को। कौन जाने यातचीत के सिलसिले में कोई बहस छिड़ जाय, और वह अखिलेश को राखी बांधने न जा सके। -