विनोद ने विमला के वहुत आग्रह करने पर अपने हृदय
के सब भाव इससे साफ साफ कह दिये। उन्होंने यह भी
कहा कि उन्हे विमला का अखिलेश के प्रति इतना अधिक
स्नेह-भाव सन्देहात्मक जान पड़ता है। विमला ने अपने
प्रयत्न भर उनके सन्देह को दूर करने की कोशिश की। और
अंत म उन्हें यहा तक श्राश्वासन दिया कि यदि विनोद
न चाहेंगे तो विमला अखिलेश से कमी मिलेगो मी नहीं।
किन्तु इतने वर्षों का सम्बन्ध कुछ घंटों में ही तोड देना बहुत कठिन है। दूसरे दिन अखिलेश के आते ही विमला यह भूल गई कि रात के समय क्याक्या बात हुई थी। वह किर अखिलेश से उसी प्रकार प्रेम से बातें करने लगी। किन्तु कुछ ही क्षण वाद विनोद की मुखाशति ने उसे रात को बातों की याद दिला दी। वह कुछ गंभीर होगई उसकी आँखें करणा और विवशता से छलक पाई। चिमला की श्रांखों में करुणा का अविभाव होना स्वाभाविक ही था, क्योंकि वह हृद्य से दुखी थी। उस पर जो सन्देह था वह निर्मूल था । यह जिम मर्मातक पीडा का अनुभव कर रही थी, उसे घही समझ सकता है, जिसका पवित्र सम्बन्ध कभी सन्देह की दृष्टि से देखा गया हो। विमला प्रयत्न करने पर भी अपनी आंखो की करणा, न छिपा सकी उसने एक दो वार अखिलेश की ओर देखा और थोडी बात चीत भी को किन्तु अपनी विवशता या कातरता प्रगट करने के लिये नहीं; किन्तु यह प्रकट करने के लिये उसके इस व्यवहार और उदासीनता से सिलेश यह न समझ बैठे कि उनका किसी प्रकार का अपमान हुअा है। विमला की दृष्टि और व्यवहार से विनोद का सन्देह और बढ़ गया।