वीमार हो ? देखो श्रद में आगया ई श्रय तुम दोमार न
रहने पानोगी"
विमला हस पडी बोली-
"अखिल भैया तुम्हें ता में सदा दुबला ही दिखा करती हूँ। पर तुम कितने दुबले हांगये हा तुम्हारा स्वास्थ भी ता बहुत अच्छा नहीं जान पड़ता"।
इसी प्रकार यहुत सी आवश्यक अनावश्यक यातों के याद थविल ने विनोद के पीठ पर, एक हल्का सा हाथ का घका देते हुए कहा।
"श्रोर क्यों ये पाजी! मुझसे दिना पूछे तुझे मेरे बहनोई यनने का दुःसाहस कैपे होगया"?
विनोद हंसता हसता बोला। अखिल यार! इतने दिनों वक विदेश में रह कर भी तुम निरे बुद्धू ही रहे। कहीं ऐसी पाते भी किसी से पूछ कर की जाती हैं। अखिल भी हंस पडा ! रात अधिक जा चुकी थी, इस लिए वह घर जाने के लिए उठे, विमला ने उनसे जाते समय पूछा।
"अय कर यायोगे अखिल भैय्या।"
"तुम जब कह दो विनो"
अखिल ने उत्तर दिया। विमला ने उनसे दूसरे दिन फिर लाने के लिये कहा, इसके बाद अखिल अपने घर गर । विनोद को विमला का अपिलेश के प्रति इतना प्रेम प्रदर्शित करना, इस प्रकार अनुरोध से बुलाना अच्छा लगा। वोले -तो कुछ नहीं पर उनकी प्रसन्नता उदासी में परिणित हो गई। उन के कुछ न कहने पर भी उनको भान भंगी और व्यवहार से विमला समझ गई कि विनोद को कुछ बुरा लगा है।