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चुप होगई । उसने आज ही अनुमय किया कि विवाह के याद स्त्री कितनी पराधीन हो जाती है। उसे पति की इच्छाओं के सामने अपनी इच्छाओं, और मनोवृतियों का किस प्रकार दनन करना पड़ता है । यह जानती थी विनोद वार यार जाने के लिए कहते हैं अवश्य, पर यदि वह सचमुच चली जाय तो उन्हें कितनी मानसिक वेदना होगी उसके जाने का परिणाम कितना भयंकर होगा।

नियत समय पर कार आई, पर विमला उतर कर नोच भी न गई; ऊपर से ही दासो के द्वारा कहला भेजा कि सिर में बहुत दर्द है इसलिए वह स्टेशन न जा सकेगी।

स्टेशन पर उतरते ही सब से पहिले अखिलेश ने विमला के विषय में पूछा। और उसे अस्वस्थ जान कर उन्हें दुग हुआ। सब से मिल जुल कर वह स्टेशन से मोध विमला के घर भाप । विमला स्टेशन न गई थी फिर भी, उसे पूर्ण विश्वास था कि उसे स्टेशन पर न पाकर अखिलेश सोधे उससे मिलने आयेंगे । इस लिये वह अपने छन्ने पर से उत्सुफ आंखों से मोटर की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने अपनी मां की मोटर दूर से देखी, और दोड कर नीचे प्रागई। उसे याद न रहा कि यह सिर दर्द का घहाना करक ही स्टेशन नहीं जा सकी है। विमला ने देपा विनोद और अखिलेश साथ ही मोटर से उत्तरे उसकी मां उन्हें छोड़ कर पाहर से ही चली गई । वह पुरानो प्रथा के अनुसार बेटी के घर पाना अनुचित समझती थीं। विमला उन्हें ड्राइंगरूम में ही मिली उसे देखते ही अखिलेश ने नेह सिक्त स्वर में उससे पूछा-

"कैसी दुबली होगई हो चिनो !क्या बहुत दिनों से