वह टाल न सका, किन्तु प्रसन्नता से स्वीकार ही क्यिा। विनोद विमला को इतना अधिक चाहते थे कि विवाह के बाद, वह दो तीन महीनेतक, मा के घर यापिस न पा सकी। विनोद उसे रोकते न थे, पर घिमला जानती थी कि उसके जाने के बाद उन्हें कितना बुरा लगेगा 1 माता पिता स मिलन के लिए कभी कभी यह बहुत विकल भी हो जाती थी, उसकी इस विकलता से विनोद को भी दुख होता था। किन्तु वह विमला का क्षणिक वियोग भी सहने का तेयार न थे यहा नक कि उन्होंने अपने मित्रों तक से मिलना जुलना यद सा कर रखा था। उनका अधिकाश समय उनके शयनागार में ही बीतता, वहीं यह पढते लिखते, और वहीं विमला उनकी श्राखों के सामने होती। विवाह के तीसरे महीने विनोद के पिता की बदली उसी शहर में हा गई, जहा विमला का मायका था। विमला और विनाद दोनों ही इससे प्रसन हुप, श्रय विमला को माता पिता से मिलन की भी सुविधा हो गई, और विनोद का भी साथ न छूट सकता था। अब वह प्राय दूसरे तीसरे दिन घटे दो घटे के लिए श्राकर अपने मा चाप से मिल जाया करती थी। इसी प्रकार एक दिन, विनोद के साथ विमला अपनी मा के घर भाई । विमला तो अन्दर चली गई, विनोद वहीं हाल की थाई हुई चिट्टिया को देखन लगे । एक पत्र विदेश पाया था। लिखावट उसक मिन और सहपाठी अखिलेश की थी। पत्र था विमला के लिए। विनाद ने उत्सुकता से पत्र को खाला, जिसमें लिखा था- प्यारी विनो अय तो तुम्हारे पनी के लिए बड़ी लम्बी प्रतीक्षा -
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