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थे। विवाह का ध्यान आते ही वह सोचते एक ही तो लड़की है वह भी चली जायगी, तो घर तो जंगल हो जायगा, जितने दिन विवाह टले उतने ही दिन अच्छा है। इसी से यह कुछ ये फिकर से रहते, इसके अतिरिक्त उन्हें विमला के योग्य कोई वर भी न मिलता था। पर अच्छा मिलता तो घर मन का न होता; और घर अच्छा मिलता तो घर में कोई न कोई बात ऐसी रहती जिससे वह विवाह करने में कुछ हिचकते थे। उनके मकान से कुछ ही दूर पर गंगा, अपनी निर्मल धारा में तेजी से यहा करती थीं। प्राय वहां के सब लोग रोज गगा में ही स्नान करते थे। विमला भी अपनी मां के साथ राज गगा नहाने जाती थी। एक दिन प्रातः काल दोनों मां बेटी नहाने गई थीं। अचानक विमला का पैर फिसला, और यह यह चली। मा पुनी को बचाने के लिए आगे चढी, किन्तु बचाना तो दूर वह स्वयं भी बहने लगी। घाट पर के किसी व्यक्ति की नजर उन पर न पडी, इसलिए दानी मा बेटी यहती हुई पुल के नजदीक पहुच गई। पुल के ऊपर स कुछ कालेज के विद्यार्थी घूमने निकले थे। एक की नजर इन असहाय स्त्रियों पर पड़ी। यह फौरन कूद पड़ा। बहुत अच्छा तैराक हाने के कारण अपने ही वादु यल पर, यह दोनों मा वेटों को बाहर निकाल लाया। उसको सहायता के लिए दूसरे विद्यार्थी भी घाट पर श्रागये थे। कोई डाकुर के लिए दौडा, और कोई मोटर के लिए दुर देर में मा तो होश में प्रागई। पर विमला स्वस्थ न हुई । इसी वीच अनन्तराम जी के पास भी सयर पहुची ये भी दौडते हुए श्राप। कमला ओर विमला अभी तक नहीं कर वापिस न गई थीं। उन्हें रह रह कर धाशंका हो रही थी कि कहीं n