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"मैं भी राखी बांधूंगी मा" "तू किसे राखी बांधेगी पेटी? मां ने किंचित उदासी से पूरा। "तुम जिसे कह दोगी मां" विमला ने सरल भाव से कह दिया । किन्तु मां के आंखों के आंसू न रक सके। कुछ सों में अपने को युद्ध स्वस्थ पाकर कमला ने कहा- "तेरी किस्मत में ही राखी बांधना लिखा होता तो क्या चार भाइयों में से एक भी न रहता, राखी का नाम लेकर जला मत घेटी! धुप रह" मां के श्रांसुओं से विमला सहम सी गई। कहाँ के और किसके चार माई; यह कुछ भी २ समझोः हाँ वह इतना ही समझी कि राषी के नाम से मां को दुख होता है इसलिए राखी का नाम श्रथ मां के सामने न लेना चाहिये। पर राखी बांधने की अपनी उत्कंठा को वह दवा न सकी। किसे राखी बांधे, और कैसे यांधे, इसी उधेड़ धुन में वह फिर यगीचे की ओर चली गई। फाटक के बैठकर वह गीली मिट्टी से लड्ड्, पेड़ा; गुजिया और तरह तरह के पकवान बनाने लगी. किन्तु गयी कीसमस्या अभी भी उसके सामने उपस्थित थी। इसी समय रोली का टीका लगाए, फूलों को माला पहिने, और हाथों में चमकती हुई राखियां बांधे हुए, उसके पास अखिलेश श्राया। यह अपना यह चैमय विमला को दिखलाना चाहता था क्योंकि विमला और उसमें मिनता होने के साथ साथ, सदा इस बात की भी लाग डांट रहती थी कि कौन किससे, किस वात में बढ़ा चढ़ा है। दोनों सदा इस बात को सिद्ध करना चाहते थे कि हम तुमसे किसी बात में कम नहीं हैं। नजदीक चुपचाप