नहीं कहेगा कि किसी वस्तु के सुखद होने तथा उसके प्रभाव के दुखद होने के अतिरिक्त और भी किसी कारण से उस वस्तु की इच्छा की जासकती है। हां इस प्रकार का आक्षेप होना सम्भव है कि आकांक्षा ( Will ) इच्छा ( Desire ) से भिन्न है। बहुत से नेक मनुष्य अर्थात् सन्त या ऐसे मनुष्य जिनके उद्देश्य निश्चित हैं अपने उद्देश्य की पूर्ति ही में लगे रहते हैं। वे इस बात का ध्यान नहीं करते कि ऐसा करने से हमें आनन्द मिल रहा है या हमें अन्त में आनन्द मिलेगा। वे तो अपने उद्देश्य की पूर्ति ही का ध्यान रखते हैं चाहे इसमें उनको अपने सुखों की क़ुर्बानी करनी पड़े चाहे उनको अनेक आपदाओं का सामना करना पड़े। ये सब बातें मैं पूर्ण रूप से मानता हूं। इस बात का मैंने कहीं उल्लेख भी किया है। आकांक्षा इच्छा से भिन्न है। अकांक्षा ( Will ) क्रियावान विकृति है तथा इच्छा ( Desire ) निष्क्रिय संवेतृता ( Passive Sensibility ) है । यद्यपि आरम्भ में आकांक्षा इच्छा ही की शाखा है किन्तु समय पाकर जड़ जमा सकती है तथा इच्छा से भिन्न रूप धारण कर सकती है। इस कारण अभ्यस्त उद्देश्य की दशा में हम उस चीज़ की इस कारण आकांक्षा नहीं करते क्यों कि हम उसकी इच्छा रखते हैं वरन् बहुधा हम उसकी इस ही कारण इच्छा करते हैं क्योंकि हम उसकी आकांक्षा रखते हैं। यह अभ्यास की शक्ति का एक उदाहरण मात्र है केवल अच्छे ही कामों में ऐसा नहीं होता है। मनुष्य बहुत सी उदासीन बातों को पहिले इसी प्रकार के उद्देश्य से करते हैं किन्तु फिर उन्हीं बातों को अभ्यास या आदत के कारण करने लगते हैं। कभी २ हम अचेतन रूप से ऐसा कर जाते हैं।
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किस प्रकार का प्रमाण दिया जा सकता है