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किस प्रकार का प्रमाण दिया जा सकता है


इन सब बातों से प्रमाणित होता है कि सुख के अतिरिक्त और कोई चीज़ इष्ट नहीं है। अन्य वस्तुवें सुख का साधन होने के कारण इष्ट हैं। जिन वस्तुवों की स्वतः उन वस्तुओं की खातिर ही इच्छा है वे वस्तुवें सुख का एक भाग हैं। जब तक कोई वस्तु सुख का भाग नहीं बन जाती तब तक उस वस्तु की उस वस्तु की खातिर इच्छा नहीं होती। जो मनुष्य नेकी की नेकी ही के बिचार से कामना करते हैं वे इस प्रकार की कामना इन दो कारणों में से किसी कारण की वजह से करते हैं। या तो उन्हें अपने नेक होने का ध्यान आने से सुख मिलता है या अपने नेक न होने का ध्यान पाने से दुःख प्राप्त होता है। या उपरोक्त दोनों कारणों की वजह से भी इस प्रकार की कामना हो सकती है क्योंकि वास्तव में सुख तथा दुःख पृथक् २ कभी ही रहते हैं, नहीं तो सदैव साथ ही साथ देखे जाते हैं। कोई मनुष्य कतिपय अंश में नेक होने के विचार से आनन्द अनुभव कर सकता है तथा अधिक नेक न होने के विचार से दुःख अनुभव कर सकता है। यदि इन में से किसी कारण से उसे सुख या दुःख अनुभव न हो तो वह नेकी की कामना नहीं करेगा। यदि कामना करेगा भी तो इस विचार से कि नेकी के कारण मुझे या मेरे प्रेमपात्र अन्य मनुष्यों को अन्य लाभ पहुंच सकते हैं।

अब हम ने इस प्रश्न का कि उपयोगितावाद के सिद्धान्त का किस प्रकार का प्रमाण दिया जा सकता है-उत्तर दे दिया है। यदि मेरी उपरोक्त सम्मति मनोविज्ञान के अनुसार ठीक है अर्थात् यदि मनुष्य की प्रकृति ही ऐसी है कि वह किसी ऐसी वस्तु की कामना नहीं करता जो सुख का भाग अथवा सुख का साधन नहीं होती--तो हम इस बात की पुष्टि में--कि केवल ये