किन्तु फिर भी मनुष्य स्वभावतया शक्ति तथा ख्याति इस कारण चाहते हैं क्योंकि शक्ति-शाली या प्रसिद्ध होने पर उन्हें अपनी अन्य इच्छाओं को पूर्ति में बड़ी सहायता मिलती है। शक्ति और ख्याति तथा हमारे अन्य इष्ट पदार्थों में इतना घनिष्ट संबंध होने के कारण ही बहुधा मनुष्यों में शक्ति तथा ख्याति की इच्छा इतनी बलवती हो गई है। कुछ मनुष्यों में तो ख्याति तथा शक्ति की इच्छा अन्य सब इच्छाओं से बढ़ जाती है। इन दशाओं में साधन उद्देश्य का एक भाग बन जाते हैं। केवल साधारण भाग ही नहीं वरन् उन पदार्थों की भी अपेक्षा, जिनके वे साधन हैं, उद्देश्य का अधिक महत्त्वपूर्ण भाग हो जाते हैं। जिस पदार्थ की पहिले इस कारण कामना की जाती थी कि वह सुख-प्राप्ति का एक साधन है, अब उस पदार्थ की ही खातिर कामना की जाने लगती है। उस साधन की प्राप्ति सुख का भाग होने के कारण की जाने लगती है। मनुष्य उस पदार्थ को (जो पहिले साधन था) पाने से ही खुश हो जाता है या अपने आपको खुशी समझने लगता है तथा उस पदार्थ के न मिलने से दुखी हो जाता है या अपने आप को दुखी समझने लगता है। जिस प्रकार सङ्गीत का प्रेम तथा स्वास्थ्य की इच्छा सुख की इच्छा से पृथक् नहीं हैं, इस ही प्रकार उस पदार्थ की इच्छा भी सुख की इच्छा से भिन्न नहीं है। ये सब बाते सुख में आ जाती हैं। ये सुख की इच्छा के कुछ तत्त्व हैं। सुख अमूर्त भावना (Abstract idea) नहीं है, वरन् मूर्त साकल्य (Concrete whole) है और ये उस के भाग हैं। इनका इस प्रकार होना उपयोगितावाद के आदर्श के अनुसार है। जीवन बहुत ही शुष्क हो जाता तथा सुख के अवसर बहुत ही
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किस प्रकार का प्रमाण दिया जा सकता है