पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/८४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८६
किस प्रकार का प्रमाण दिया जा सकता है


उद्देश्यों से सम्बन्ध रखने वाले विषय दूसरे शब्दों में इस बात के प्रश्न होते हैं कि क्या २ चीजें इष्ट हैं। उपयोगितावाद का सिद्धान्त यह है कि मुख इष्ट है तथा उद्देश्य की दृष्टि से एकमात्र सुख ही इष्ट है। अन्य सारी वस्तुएं इस उद्देश्य-प्राप्ति में सहायक होने ही के कारण इष्ट हैं। अब प्रश्न उठता है कि इस सिद्धान्त के पोषक क्या बात प्रमाणित करें कि जिससे और लोग भी इस सिद्धान्त को मानलें।

किसी वस्तु के प्रत्यक्ष होने का एक मात्र माननीय प्रमाण यही दिया जा सकता है कि आदमी वास्तव में उसे देखते हैं। किसी ध्वनि के श्रोतव्य होने का एकमात्र प्रमाण यह है कि आदमी उसे सुनते हैं। इसी प्रकार किसी वस्तु के इष्ट होने का एक मात्र प्रमाण यही दिया जा सकता है कि मनुष्य उस वस्तु को वास्तव में चाहते हैं। सर्व साधारण का सुख क्यों इष्ट है? इस बात का सिवाय इसके और कोई प्रमाण नहीं दिया जा सकता कि प्रत्येक मनुष्य अपने सुख का यथासम्भव इच्छक रहता है। यह एक वास्तविक बात है। इस कारण यही प्रमाण है जो दिया जा सकता है कि सुख अच्छा है। प्रत्येक मनुष्य का सुख उस मनुष्य के लिये अच्छा है। और इस कारण सर्व साधारण का सुख सब मनुष्यों के समाज के लिये अच्छा है। सुख प्राचार का एक उद्देश्य है और इस कारण आचार-युक्तता का एक निर्णायक है।

किन्तु इतने ही से सुख आचारयुक्तता का एकमात्र निर्णायक प्रमाणित नहीं हो जाता। इस बात को प्रमाणित करने के लिये इस ही नियम के अनुसार यह दिखाना आवश्यक है कि मनुष्य केवल सुख ही को नहीं चाहते हैं