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संभव है अनुवाद-संबन्धी अनेक भूलें हो गई हों। यद्यपि ऐसे कठिन कार्य में हाथ न डालना ही उचित था, किंतु यह सोच कर कि जिन बातों का विचार इस पुस्तक में है उनके जानने की बड़ी आवश्यकता है, अनुवाद करने का साहस करना ही पड़ा।
माननीय पं॰ महाबीर प्रसाद द्विवेदी के कथनानुसार इस समय हिन्दी में जितनी पुस्तकें लिखी जायें खूब सरल भाषा में लिखी जानी चाहिये। इस कारण इस पुस्तक की भाषा यथा संभव सरल रखने का प्रयत्न किया गया है, किंतु फिर भी पुस्तक का विषय ऐसा कठिन है कि वहीं २ पर विवश होकर संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करना ही पड़ा है।
मेरठ | उमरावसिंह कारुणिक बी॰ ए॰ |
१-१-२४ |