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उपयोगितावाद के सिद्धान्त की सनद


सेवक के सम्बन्ध को छोड़कर मनुष्य उसी दशा में समाज में रह सकते हैं जब कि सब मनुष्यों के हिताहित का ध्यान रक्खा जाय। इसके अतिरिक्त और किसी आधार पर समाज का स्थिर रहना देखती पाखों असम्भव प्रतीत होता है। समान मनुष्यों का मेल इसी समझौते पर रह सकता है कि सब मनुष्यों के हित की ओर बराबर ध्यान दिया जायगा। सभ्यता की प्रत्येक दशा में, अनियन्त्रित शासक को छोड़ कर, प्रत्येक मनुष्य के समान अन्य मनुष्य भी रहते हैं। इस कारण प्रत्येक मनुष्य को अन्य मनुष्यों के साथ बराबरी का सम्बन्ध रखने के लिये विवश होना पड़ता है। दिन प्रति दिन हम ऐसी दशा के निकटतर पहुंचते जा रहे हैं जब सदैव के लिये किसी मनुष्य के साथ बराबरी के अतिरिक्त और किसी प्रकार का सम्बन्ध रखना असम्भव होजायगा। इस कारण दिन प्रतिदिन हमको दूसरों के हित की बिल्कुल उपेक्षा का विचार कल्पनातीत प्रतीत होता जा रहा है। हम एक दूसरे के साथ काम करना सीखते जा रहे हैं तथा अपने कामों का उद्देश्य व्यक्तिगत हित के स्थान में सामाजिक हित (कम से कम इस समय के लिये) बताने लगे हैं। जब तक हम दूसरों के साथ काम करते रहेंगे तथा हमारे और उनके उद्देश्य एक रहेंगे उस समय कम से कम यह क्षणिक भावना अवश्य उत्पन्न होजायगी कि दूसरों का हित हमारा ही हित है। सामाजिक बन्धनों के दृढ़ होने तथा समाजके उन्नतावस्था को प्राप्त होने से दूसरों के सुख का ध्यान रखने की ओर केवल हमारी अधिक अभिरुचि ही नहीं हो जायगी वरन् हमारी भावनाएं उनकी भलाई के रंग में रंग जायेंगी। कम से कम व्यवहार रूप में दूसरों की भलाई का