उदाहरणतः कभी २ झूठ बोलने से हम किसी क्षणिक झंझट से बच सकते हैं या किसी ऐसे उद्देश्य की सिद्धि कर सकते हैं जो हमारे लिये या दूसरों के लिये लाभकारी हो। किन्तु सत्यवादिता की बान डालना हमारे लिये बहुत उपयोगी है तथा सत्यशीलता की आदत को कमज़ोर करना हमारे लिये बहुत हानिप्रद है क्योंकि सत्य के पथ से डिगना चाहे भूल से ही हो मनुष्यों के बचन की विश्वसनीयता को बहुत कुछ कम करता है और मनुष्यों के बचन की विश्वसनीयता पर ही सारी आधुनिक सामाजिक सुव्यवस्था का आधार है तथा मनुष्यों के कथन की विश्वसनीयता पर विश्वास न रहने से सभ्यता की बढ़ती या प्रसार में सबसे अधिक रुकावट पड़ती है। इस कारण क्षणिक लाभ के लिये इस सर्वातीत या बहुत अधिक मस्लहत के नियम को तोड़ना मस्लहत नहीं है। जो मनुष्य अपने या किसी दूसरे मनुष्य की सुविधा के लिये ऐसा करता है समाज को हानि पहुंचाता है क्योंकि सामाजिक कार व्यवहार एक दूसरे के बचन को विश्वसनीय मानकर ही चलते हैं। इस कारण ऐसे मनुष्य की गणना समाज के सबसे बड़े दुश्मनों में होनी चाहिये। किन्तु सत्य पर आरुढ़ रहने के इतने महत्वपूर्ण तथा पवित्र नियम का कहीं२ अपवाद (Exception) भी होता है। इस बात को सब सम्प्रदाय के प्राचार शास्त्रियों ने माना है। विशेष अपवाद उस समय के लिये है जब कि किसी बात को छिपाने से (जैसे किसी ज्ञात सूचना को मुजरिम से छिपाने से या किसी बुरी सूचना को किसी बहुत ज्यादा बीमार आदमी के छिपाने से) किसी मनुष्य की (विशेषतया अपने से अतिरिक्त किसी और व्यक्ति की) बहुत बड़ी बला टल जाय। ऐसी दशा में
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उपयोगितावाद का अर्थ