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दूसरा अध्याय


ऐसे भाव पैदा हो जायें कि स्वयं सत्य को मालूम करने तथा तदुपरान्त उसके अनुसार कार्य करने का प्रयत्न करें। साधारणातया बता देने के अतिरिक्त ईश्वर ने पूर्ण रूप से यह बताना उचित नहीं समझा है कि क्या २ ठीक है। इस कारण हमको एक ऐसे सिद्धान्त की प्रावश्यकता है जो हमको बतलावे कि ईश्वर की इच्छा यह है। इस सम्मति पर चाहे ठीक हो या गलत-यहां विचार करना व्यर्थ है क्योंकि यह समस्या कि प्राचार-शास्त्र के नियम निर्धारित करने में प्राकृतिक अथवा श्रोत-धर्म से कहां तक सहायता लेनी चाहिये-आचार-शास्त्र के सब ही सम्प्रदाय वालों के लिये है।

बहुत से आदमी उपयोगितावाद को सुसाधकता या मस्लहन (Expediency) का नाम देकर ही दुराचारी सिद्धान्त होने का लाञ्छन लगा देते हैं। साधारणतया मस्लहत शब्द सिद्धान्त के विपरीत' अर्थ में व्यवहृत होता है। ये लोग इस साधारण अर्थ से लाभ उठाने का प्रयत्न करते हैं। किन्तु जब मस्लहत शब्द उचित या ठीक (Right) के विपरीत अर्थ में प्रयुक्त होता है तो साधारणतया मस्लहत शब्द से उस कार्य का मतलब होता है जो कर्ता ही के लिये विशेष लाभकारी हो। किन्तु जब मस्लहत शब्द इससे अच्छे अर्थ में प्रयुक्त होता है तो मस्लहत शब्द से मतलब होता है कि वह काम जो तत्कालिक उद्देश्य या क्षणिक प्रयोजन के लिये अच्छा हो किन्तु उसके करने से किसी ऐसे नियम का उल्लंघन होता है जिसका उल्लंघन न करना ही अधिक मस्लहत की बात है। इस अर्थ में मस्लहत शब्द उपयोगी शब्द का समानार्थी होने के स्थान में हानिकारक होने के माने रखता है।